Saturday 20 August 2011

एक क्रांति सुरज “अन्ना” ।

एक क्रांति सुरज…"Varsha Pargat" on August 20, 2011


रास्ते पर जाते जाते

ठोकर लगी और

दर्द भरी चीख निकली

तो देखा किसीने

मेरा हाथ थामा…

मैंने जैसे ही नजर उठाई

तो आँखें भर आई

लगा की यह सपना हैं

पर जब उसने कहा

‘बेटा… आओ, उठो, मेरे साथ चलो’…

क्षण भर अहसास हुआ

यह तो कोई “अपना” हैं…

मेरी उंगली थामे वो आगे बढ़ा…

रास्ते पर जाते जाते

अपनी कहानी सुनाई

उसने ही तो लड़ी थी

आजादी की लड़ाई…

उसके भी जीवन में

आऐ कई उतार चढ़ाव

लगी बहुत ठोकरे और घाव…

कभी खड़ा रहा सीना ताने

देश की सीमाओं पर…

तो कभी उतरा जंग लड़ने

घर के ही मैदान पर…

हर घड़ी हर वक्त

उम्मीद, उमंग, वचन, व्रत से

वो दिन-रात बुनता रहा

सपनों की चादर…

चलते-चलते वो अकेला

कभी भी थका नहीं

सच, त्याग और अहिंसा का पुजारी

कभी भी झुका नहीं…

फिर उसकी आवाज

सबकी आवाज बन गई

यह देश, यह माटी उसकी

छाँह बन गई…

उसके कदम बढ़ते गए

और जब मुड़ कर देखा

तो पाया…

सारा जहाँ उसके साथ

उठ खड़ा हुआ हैं

मानो हिंदुस्तान में

क्रांति का दुत पुकार रहा हैं…

मै जब उसके साथ साथ

चलती गई…

उसके ही विचार, प्रण और रंग में

रंगती गई…

मेरे दिल में एक आस जगी,

और जगी नई तमन्ना

साथ पाया मैने

एक क्रांति सुरज “अन्ना” ।


संकलनकर्ता :- गोपाल रावत 

Friday 19 August 2011

मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए।



Aag Jalni Chahiye

आग जलनी चाहिए
- दुष्यन्त कुमार (Dushyant Kumar)


हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिए
इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए

आज यह दीवार, परदों की तरह हिलने लगी,
शर्त लेकिन थी कि ये बुनियाद हिलनी चाहिए

हर सड़क पर, हर गली में, हर नगर, हर गाँव में
हाथ लहराते हुए हर लाश चलनी चाहिए


सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं,
सारी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए


मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही
हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए।


संकलन:- गोपाल रावत

यह दिया बुझे नहीं घोर अंधकार हो चल रही बयार हो

Yeh Diya Bhujhe Nahi


यह दिया बुझे नहीं
घोर अंधकार हो
चल रही बयार हो
आज द्वार–द्वार पर यह दिया बुझे नहीं
यह निशीथ का दिया ला रहा विहान है।
शक्ति का दिया हुआ
शक्ति को दिया हुआ
भक्ति से दिया हुआ
यह स्वतंत्रता–दिया
रूक रही न नाव हो
जोर का बहाव हो
आज गंग–धार पर यह दिया बुझे नहीं
यह स्वदेश का दिया प्राण के समान है।
यह अतीत कल्पना
यह विनीत प्रार्थना
यह पुनीत भावना
यह अनंत साधना
शांति हो, अशांति हो
युद्ध, संधि, क्रांति हो
तीर पर¸ कछार पर¸ यह दिया बुझे नहीं
देश पर, समाज पर, ज्योति का वितान है।
तीन–चार फूल है
आस–पास धूल है
बांस है –बबूल है
घास के दुकूल है
वायु भी हिलोर दे
फूंक दे, चकोर दे
कब्र पर मजार पर, यह दिया बुझे नहीं
यह किसी शहीद का पुण्य–प्राण दान है।
झूम–झूम बदलियाँ
चूम–चूम बिजलियाँ
आंधिया उठा रहीं
हलचलें मचा रहीं
लड़ रहा स्वदेश हो
यातना विशेष हो
क्षुद्र जीत–हार पर, यह दिया बुझे नहीं
यह स्वतंत्र भावना का स्वतंत्र गान है।

- गोपाल सिंह नेपाली (Gopal Singh Nepali)

कोशिश करने वालों की.....!!!

कोशिश करने वालों की
- हरिवंशराय बच्चन (Harivansh Rai Bachchan) (few people think that it is from सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला")



लहरों से डर कर नौका पार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती। 

नन्हीं चींटी जब दाना लेकर चलती है,
चढ़ती दीवारों पर, सौ बार फिसलती है।


मन का विश्वास रगों में साहस भरता है,
चढ़कर गिरना, गिरकर चढ़ना न अखरता है।


आख़िर उसकी मेहनत बेकार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।
डुबकियां सिंधु में गोताखोर लगाता है,
जा जा कर खाली हाथ लौटकर आता है।


मिलते नहीं सहज ही मोती गहरे पानी में,
बढ़ता दुगना उत्साह इसी हैरानी में।


मुट्ठी उसकी खाली हर बार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।
असफलता एक चुनौती है, इसे स्वीकार करो,
क्या कमी रह गई, देखो और सुधार करो।


जब तक न सफल हो, नींद चैन को त्यागो तुम,
संघर्ष का मैदान छोड़ कर मत भागो तुम।


कुछ किये बिना ही जय जय कार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।


संकलनकर्ता :-  गोपाल रावत

हजारों ख्वाहिशें ऐसी कि

हजारों ख्वाहिशें ऐसी कि हर ख्वाहिश पे दम निकले
बहुत निकले मेरे अरमाँ, लेकिन फिर भी कम निकले

 
डरे क्यों मेरा कातिल क्या रहेगा उसकी गर्दन पर
वो खून जो चश्म-ऐ-तर से उम्र भर यूं दम-ब-दम निकले


निकलना खुल्द से आदम का सुनते आये हैं लेकिन
बहुत बे-आबरू होकर तेरे कूचे से हम निकले


भ्रम खुल जाये जालीम तेरे कामत कि दराजी का
अगर इस तुर्रा-ए-पुरपेच-ओ-खम का पेच-ओ-खम निकले




मगर लिखवाये कोई उसको खत तो हमसे लिखवाये
हुई सुबह और घर से कान पर रखकर कलम निकले


हुई इस दौर में मनसूब मुझसे बादा-आशामी
फिर आया वो जमाना जो जहाँ से जाम-ए-जम निकले


हुई जिनसे तव्वको खस्तगी की दाद पाने की
वो हमसे भी ज्यादा खस्ता-ए-तेग-ए-सितम निकले


मुहब्बत में नहीं है फ़र्क जीने और मरने का
उसी को देख कर जीते हैं जिस काफिर पे दम निकले


जरा कर जोर सिने पर कि तीर-ऐ-पुरसितम निकले
जो वो निकले तो दिल निकले, जो दिल निकले तो दम निकले



खुदा के बासते पर्दा ना काबे से उठा जालिम
कहीं ऐसा न हो याँ भी वही काफिर सनम निकले


कहाँ मयखाने का दरवाजा 'गालिब' और कहाँ वाइज़
पर इतना जानते हैं, कल वो जाता था के हम निकले

- मिर्जा गालिब (Mirza Ghalib)

--
चश्म-ऐ-तर - wet eyes
खुल्द - Paradise
कूचे - street
कामत - stature
दराजी - length
तुर्रा - ornamental tassel worn in the turban
पेच-ओ-खम - curls in the hair
मनसूब - association
बादा-आशामी - having to do with drinks
तव्वको - expectation
खस्तगी - injury
खस्ता - broken/sick/injured
तेग - sword
सितम - cruelity
क़ाबे - House Of Allah In Mecca
वाइज़ - preacher

Saturday 13 August 2011

Follow me on Facebook

प्रेम

मुस्कान प्रेम की भाषा है।
सच्चा प्रेम दुर्लभ है, सच्ची मित्रता और भी दुर्लभ है।

अहंकार छोडे बिना सच्चा प्रेम नही किया जा सकता।

प्रसन्नता स्वास्थ्य देती है, विषाद रोग देते है।

प्रसन्न करने का उपाय है, स्वयं प्रसन्न रहना।

 
अधिकार जताने से अधिकार सिद्ध नही होता।
एक गुण समस्त दोषो को ढक लेता है।

दूसरो से प्रेम करना अपने आप से प्रेम करना है।

सफलता

वही सबसे तेज चलता है, जो अकेला चलता है। प्रत्येक अच्छा कार्य पहले असम्भव नजर आता है। ऊद्यम ही सफलता की कुंजी है। एकाग्रता से ही विजय मिलती है। कीर्ति वीरोचित कार्यो की सुगन्ध है। भाग्य साहसी का साथ देता है।
सफलता अत्यधिक परिश्रम चाहती है।
विवेक बहादुरी का उत्तम अंश है। कार्य उद्यम से सिद्ध होते है, मनोरथो से नही।
संकल्प ही मनुष्य का बल है। प्रचंड वायु मे भी पहाड विचलित नही होते। कर्म करने मे ही अधिकार है, फल मे नही। मेहनत, हिम्मत और लगन से कल्पना साकार होती है। अपने शक्तियो पर भरोसा करने वाला कभी असफल नही होता।