Sunday 16 October 2011

बेटियाँ॥




साथ माँ-बाप का निभाती हैं हर पल ये बेटियाँ,
खुशहाली हर पल घर में लाती हैं ये बेटियाँ।

खुद ही तमाम परेशानियाँ झेलकर,
खुस रहती हैं और खुशियाँ बांटती हैं ये बेटियाँ।

अंधेरे घरों में रौनक हर पल लाती हैं ये बेटियाँ,
वो घर वीराना ही है, ना हो जिसमें ये बेटियाँ॥

कह-कहों की किलकारियों से महकता रहता है आँगन उनका,
नसीब होते हैं उन्हीं के बुलंद, होती हैं जिनके घर प्यारी ये बेटियाँ।

घर वीरान हो जाता है, खुशियाँ सारी छिन ज़ाती हैं,
जिस रोज़ घर से रुकसत होती हैं दिले "नाचीज़" ये बेटियाँ॥

Tuesday 13 September 2011

Kahe Ko Byahe Videsh-Amir Khusro

काहे को ब्याहे बिदेस,
अरे
, लखिय बाबुल मोरे काहे को ब्याहे बिदेस
भैया को दियो बाबुल महले दो-महले
हमको दियो परदेस अरे, लखिय बाबुल मोरे
काहे को ब्याहे बिदेस
हम तो बाबुल तोरे खूँटे की गैयाँ
जित हाँके हँक जैहें अरे, लखिय बाबुल मोरे
काहे को ब्याहे बिदेस

हम तो बाबुल तोरे बेले की कलियाँ
घर-घर माँगे हैं जैहें अरे, लखिय बाबुल मोरे
काहे को ब्याहे बिदेस

कोठे तले से पलकिया जो निकली
बीरन ने खाए पछाड़ अरे, लखिय बाबुल मोरे
काहे को ब्याहे बिदेस

हम तो हैं बाबुल तोरे पिंजरे की चिड़ियाँ
भोर भये उड़ जैहें अरे, लखिय बाबुल मोरे
काहे को ब्याहे बिदेस

तारों भरी मैनें गुड़िया जो छोड़ी  
छूटा सहेली का साथ अरे, लखिय बाबुल मोरे
काहे को ब्याहे बिदेस

डोली का पर्दा उठा के जो देखा
आया पिया का देस अरे, लखिय बाबुल मोरे
काहे को ब्याहे बिदेस

अरे, लखिय बाबुल मोरे
काहे को ब्याहे बिदेस अरे, लखिय बाबुल मोरे

संकलन-गोपाल रावत
14, सितंबर-2011

KARMVEER-AYDHYA SINGH UPADHYAY HARIODH

कर्मवीर

देख कर बाधा विविध, बहु विघ्न घबराते नहीं
रह भरोसे भाग के दुख भोग पछताते नहीं
काम कितना ही कठिन हो किन्तु उबताते नहीं
भीड़ में चंचल बने जो वीर दिखलाते नहीं
हो गये एक आन में उनके बुरे दिन भी भले
सब जगह सब काल में वे ही मिले फूले फले ।

आज करना है जिसे करते उसे हैं आज ही
सोचते कहते हैं जो कुछ कर दिखाते हैं वही
मानते जो भी हैं सुनते हैं सदा सबकी कही
जो मदद करते हैं अपनी इस जगत में आप ही
भूल कर वे दूसरों का मुँह कभी तकते नहीं
कौन ऐसा काम है वे कर जिसे सकते नहीं ।

जो कभी अपने समय को यों बिताते हैं नहीं
काम करने की जगह बातें बनाते हैं नहीं
आज कल करते हुये जो दिन गंवाते हैं नहीं
यत्न करने से कभी जो जी चुराते हैं नहीं
बात है वह कौन जो होती नहीं उनके लिये
वे नमूना आप बन जाते हैं औरों के लिये ।

व्योम को छूते हुये दुर्गम पहाड़ों के शिखर
वे घने जंगल जहां रहता है तम आठों पहर
गर्जते जल-राशि की उठती हुयी ऊँची लहर
आग की भयदायिनी फैली दिशाओं में लपट
ये कंपा सकती कभी जिसके कलेजे को नहीं
भूलकर भी वह नहीं नाकाम रहता है कहीं ।



संकलन- गोपाल रावत -सितंबर-14-2011

पायलट अन्ना हजारे जी !! एक बार कपिल सिब्बल, चिदंबरम और दिग्विजय सिंह एक साथ हेलिकॉप्टर में जा रहे थे। सिब्बल ने एक 100 रुपये का नोट गिराया और कहा कि मैंने आज एक गरीब भारतीय को खुश कर दिया।


एक बार कपिल सिब्बल, चिदंबरम और दिग्विजय सिंह एक साथ हेलिकॉप्टर में जा रहे थे। सिब्बल ने एक 100 रुपये का नोट गिराया और कहा कि मैंने आज एक गरीब भारतीय को खुश कर दिया।
तभी दिग्विजय सिंह ने 100 रुपये के 2 नोट गिराए और कहा, मैंने तो 2 गरीब भारतीयों को खुश कर दिया।
अब चिदंबरम की बारी थी। उन्होंने एक रुपये के 100 सिक्के गिराए और कहा, मैंने 100 गरीब भारतीयों को खुश कर दिया।
उनकी ये बातें सुनकर पायलट हंसा और बोला -  ”अब मैं तुम तीनों को गिराने जा रहा हूँ, 125 करोड़ भारतीयों को खुशी मिलेगी।” 

पायलट अन्ना हजारे थे।

Saturday 20 August 2011

एक क्रांति सुरज “अन्ना” ।

एक क्रांति सुरज…"Varsha Pargat" on August 20, 2011


रास्ते पर जाते जाते

ठोकर लगी और

दर्द भरी चीख निकली

तो देखा किसीने

मेरा हाथ थामा…

मैंने जैसे ही नजर उठाई

तो आँखें भर आई

लगा की यह सपना हैं

पर जब उसने कहा

‘बेटा… आओ, उठो, मेरे साथ चलो’…

क्षण भर अहसास हुआ

यह तो कोई “अपना” हैं…

मेरी उंगली थामे वो आगे बढ़ा…

रास्ते पर जाते जाते

अपनी कहानी सुनाई

उसने ही तो लड़ी थी

आजादी की लड़ाई…

उसके भी जीवन में

आऐ कई उतार चढ़ाव

लगी बहुत ठोकरे और घाव…

कभी खड़ा रहा सीना ताने

देश की सीमाओं पर…

तो कभी उतरा जंग लड़ने

घर के ही मैदान पर…

हर घड़ी हर वक्त

उम्मीद, उमंग, वचन, व्रत से

वो दिन-रात बुनता रहा

सपनों की चादर…

चलते-चलते वो अकेला

कभी भी थका नहीं

सच, त्याग और अहिंसा का पुजारी

कभी भी झुका नहीं…

फिर उसकी आवाज

सबकी आवाज बन गई

यह देश, यह माटी उसकी

छाँह बन गई…

उसके कदम बढ़ते गए

और जब मुड़ कर देखा

तो पाया…

सारा जहाँ उसके साथ

उठ खड़ा हुआ हैं

मानो हिंदुस्तान में

क्रांति का दुत पुकार रहा हैं…

मै जब उसके साथ साथ

चलती गई…

उसके ही विचार, प्रण और रंग में

रंगती गई…

मेरे दिल में एक आस जगी,

और जगी नई तमन्ना

साथ पाया मैने

एक क्रांति सुरज “अन्ना” ।


संकलनकर्ता :- गोपाल रावत 

Friday 19 August 2011

मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए।



Aag Jalni Chahiye

आग जलनी चाहिए
- दुष्यन्त कुमार (Dushyant Kumar)


हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिए
इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए

आज यह दीवार, परदों की तरह हिलने लगी,
शर्त लेकिन थी कि ये बुनियाद हिलनी चाहिए

हर सड़क पर, हर गली में, हर नगर, हर गाँव में
हाथ लहराते हुए हर लाश चलनी चाहिए


सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं,
सारी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए


मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही
हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए।


संकलन:- गोपाल रावत

यह दिया बुझे नहीं घोर अंधकार हो चल रही बयार हो

Yeh Diya Bhujhe Nahi


यह दिया बुझे नहीं
घोर अंधकार हो
चल रही बयार हो
आज द्वार–द्वार पर यह दिया बुझे नहीं
यह निशीथ का दिया ला रहा विहान है।
शक्ति का दिया हुआ
शक्ति को दिया हुआ
भक्ति से दिया हुआ
यह स्वतंत्रता–दिया
रूक रही न नाव हो
जोर का बहाव हो
आज गंग–धार पर यह दिया बुझे नहीं
यह स्वदेश का दिया प्राण के समान है।
यह अतीत कल्पना
यह विनीत प्रार्थना
यह पुनीत भावना
यह अनंत साधना
शांति हो, अशांति हो
युद्ध, संधि, क्रांति हो
तीर पर¸ कछार पर¸ यह दिया बुझे नहीं
देश पर, समाज पर, ज्योति का वितान है।
तीन–चार फूल है
आस–पास धूल है
बांस है –बबूल है
घास के दुकूल है
वायु भी हिलोर दे
फूंक दे, चकोर दे
कब्र पर मजार पर, यह दिया बुझे नहीं
यह किसी शहीद का पुण्य–प्राण दान है।
झूम–झूम बदलियाँ
चूम–चूम बिजलियाँ
आंधिया उठा रहीं
हलचलें मचा रहीं
लड़ रहा स्वदेश हो
यातना विशेष हो
क्षुद्र जीत–हार पर, यह दिया बुझे नहीं
यह स्वतंत्र भावना का स्वतंत्र गान है।

- गोपाल सिंह नेपाली (Gopal Singh Nepali)